छोटे शहरों की कथाओं के नायक-नायिकाओं को एक नई रोशनी में चित्रित करने का एक छोटा प्रयास इस उपन्यास के माध्यम से लेखक ने किया है। हम गाँवो और कस्बों के प्रति एक विशेष पूर्वाभास के चलते यहाँ के जीवन को जरूरत से ज्यादा भोला-भाला एवं मासूम समझते आ रहे हैं। यह अवश्य है कि बड़े शहरों की अपेक्षा यहाँ शोर-शराबा कम है पर मानवीय प्रवृत्तियाँ कमोबेश हर जगह एक जैसी होती हैं। कामनाओं, छल, कपट और छद्म संवेदनाओं का कोई क्षेत्र आरेखित नहीं होता। पीढ़ियों से जिन किस्सों, वाकयों को हम देखते आ रहे हैं, जिन्हे हम छोटे शहर के अखबारों में पढ़ते रहते हैं पर जिनका जिक्र कम करते हैं - ऐसे अनुभवों का पुलिंदा इस उपन्यास में सहेजने की एक कोशिश की गई है। इस उपन्यास में मूलतः चार स्त्रियों के चरित्रों पर रोशनी डाली गई है। सुप्रिया और अलका पिछली पीढ़ी से और रीमा और अपर्णा नई पीढ़ी से हैं। चारों की अपनी अपनी समस्याएं हैं और चारों अपने-अपने तरीके से जीवन की समस्याओं से जूझ रहीं हैं। सुप्रिया अपने पति की बेरुखी से दुखी है तो अलका अपने पति की बेरहमी से। अपर्णा अपने बॉयफ्रेंड के झांसे में आ कर पछता रही है वहीं रीमा का चरित्र एक ग्रे शेड में दिखाया गया है। यदि आप इसके किरदारों को अपने आस पास देख पा रहे हैं और उन्हे थोड़ा भी समझ पा रहे हैं तो यह प्रयत्न विफल नहीं कहलाया जाएगा। यहाँ यह कहना आवश्यक होगा कि इस उपन्यास में चित्रित सभी किरदार और यहाँ तक की कस्बा-शहर भी पूर्णतः काल्पनिक हैं। सिर्फ नाम को छोड़ कर आगरा और बड़ामलहरा जैसी जगहों से कोई विशेषता नहीं ली गई है और एक अलग ही संसार की अनुकल्पना की गई है। इस संसार का आधार अवश्य ही असल ज़िंदगी से लिया गया है पर पूरा ढांचा कल्पित है।
छोटे शहरों की कथाओं के नायक-नायिकाओं को एक नई रोशनी में चित्रित करने का एक छोटा प्रयास इस उपन्यास के माध्यम से लेखक ने किया है। हम गाँवो और कस्बों के प्रति एक विशेष पूर्वाभास के चलते यहाँ के जीवन को जरूरत से ज्यादा भोला-भाला एवं मासूम समझते आ रहे हैं। यह अवश्य है कि बड़े शहरों की अपेक्षा यहाँ शोर-शराबा कम है पर मानवीय प्रवृत्तियाँ कमोबेश हर जगह एक जैसी होती हैं। कामनाओं, छल, कपट और छद्म संवेदनाओं का कोई क्षेत्र आरेखित नहीं होता। पीढ़ियों से जिन किस्सों, वाकयों को हम देखते आ रहे हैं, जिन्हे हम छोटे शहर के अखबारों में पढ़ते रहते हैं पर जिनका जिक्र कम करते हैं - ऐसे अनुभवों का पुलिंदा इस उपन्यास में सहेजने की एक कोशिश की गई है। इस उपन्यास में मूलतः चार स्त्रियों के चरित्रों पर रोशनी डाली गई है। सुप्रिया और अलका पिछली पीढ़ी से और रीमा और अपर्णा नई पीढ़ी से हैं। चारों की अपनी अपनी समस्याएं हैं और चारों अपने-अपने तरीके से जीवन की समस्याओं से जूझ रहीं हैं। सुप्रिया अपने पति की बेरुखी से दुखी है तो अलका अपने पति की बेरहमी से। अपर्णा अपने बॉयफ्रेंड के झांसे में आ कर पछता रही है वहीं रीमा का चरित्र एक ग्रे शेड में दिखाया गया है। यदि आप इसके किरदारों को अपने आस पास देख पा रहे हैं और उन्हे थोड़ा भी समझ पा रहे हैं तो यह प्रयत्न विफल नहीं कहलाया जाएगा। यहाँ यह कहना आवश्यक होगा कि इस उपन्यास में चित्रित सभी किरदार और यहाँ तक की कस्बा-शहर भी पूर्णतः काल्पनिक हैं। सिर्फ नाम को छोड़ कर आगरा और बड़ामलहरा जैसी जगहों से कोई विशेषता नहीं ली गई है और एक अलग ही संसार की अनुकल्पना की गई है। इस संसार का आधार अवश्य ही असल ज़िंदगी से लिया गया है पर पूरा ढांचा कल्पित है।