"मैं इस घर में विवाह करके आई थी, एक कुंवारी नवयुवती की तरह अब तक यहाँ रही और अब विधवा बनकर अपने मायके जा रही हूँ।"
उपन्यास की नायिका 'वंदना' ने यह उद्गार उसके मन की पीड़ा को स्पष्ट करते हुए कहे हैं। क्योंकि विवाह के पश्चात जो आनंदमय गृहस्थी बसाने का उसने स्वप्न देखा था, वह टूट चुका है।
वंदना के जीवन में ऐसा क्या हुआ जिसके कारण वह अपना ससुराल छोड़कर जाने को विवश है? जानने के लिए पढ़िये - 'पत्तियों की सरसराहट'।
"मैं इस घर में विवाह करके आई थी, एक कुंवारी नवयुवती की तरह अब तक यहाँ रही और अब विधवा बनकर अपने मायके जा रही हूँ।"
उपन्यास की नायिका 'वंदना' ने यह उद्गार उसके मन की पीड़ा को स्पष्ट करते हुए कहे हैं। क्योंकि विवाह के पश्चात जो आनंदमय गृहस्थी बसाने का उसने स्वप्न देखा था, वह टूट चुका है।
वंदना के जीवन में ऐसा क्या हुआ जिसके कारण वह अपना ससुराल छोड़कर जाने को विवश है? जानने के लिए पढ़िये - 'पत्तियों की सरसराहट'।