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मुझे चाँद चाहिए Mujhe Chand Chahiye

Surendra Verma
4.32/5 (171 ratings)
कई दशकों से हिन्दी उपन्यास में छाये ठोस सन्नाटे को तोड़ने वाली कृति आपके हाथों में है, जिसे सुधी पाठकों ने भी हाथों-हाथ लिया है और मान्य आलोचकों ने भी !
शाहजहाँपुर के अभाव-जर्जर, पुरातनपंथी ब्राह्मण-परिवार में जन्मी वर्षा वशिष्ठ बी.ए. के पहले साल में अचानक एक नाटक में अभिनय करती है और उसके जीवन की दिशा बदल जाती है। आत्माभिव्यक्ति के संतोष की यह ललक उसे शाहजहाँनाबाद के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा तक लाती है, जहाँ कला-कुंड में धीरे-धीरे तपते हुए वह राष्ट्रीय स्तर पर अपनी क्षमता प्रमाणित करती है और फिर उसके पास आता है एक कला फिल्म का प्रस्ताव !

आत्मान्वेषण और आत्मोपलब्धि की इस कंटक-यात्रा में एक ओर वर्षा अपने परिवार के तीखे विरोध से लहूलुहान होती है और दूसरी ओर आत्मसंशय, लोकापवाद और अपनी रचनात्मक प्रतिभा को मांजने-निखारने वाली दुरूह, काली प्रक्रिया से क्षत-विक्षत। पर उसकी कलात्मक आस्था उसे संघर्ष-पथ पर आगे बढ़ाती जाती है।
वस्तुतः यह कथा-कृति व्यक्ति और उसके कलाकार, परिवार, सहयोगी एवं परिवेश के बीच चलने वाले सनातन द्वंद्व की और कला तथा जीवन के पैने संघर्ष व अंतर्विरोधों की महागाथा है।

परंपरा और आधुनिकता की ज्वलनशील टकराहट से दीप्त रंगमंच एवं सिनेमा जैसे कला-क्षेत्रों का महाकाव्यीय सिंहावलोकन ! अपनी प्रखर संवेदना के लिए सर्वमान्य सिद्धहस्त कथाकार तथा प्रख्यात नाटककार की अभिनव उपलब्धि !
Format:
Paperback
Pages:
pages
Publication:
Publisher:
Radhakrishna Prakashan
Edition:
1. saṃskaraṇa, 1. saṃskaraṇa, 1. saṃskaraṇa, 1. saṃskaraṇa
Language:
hin
ISBN10:
8171191347
ISBN13:
9788171191345
kindle Asin:

मुझे चाँद चाहिए Mujhe Chand Chahiye

Surendra Verma
4.32/5 (171 ratings)
कई दशकों से हिन्दी उपन्यास में छाये ठोस सन्नाटे को तोड़ने वाली कृति आपके हाथों में है, जिसे सुधी पाठकों ने भी हाथों-हाथ लिया है और मान्य आलोचकों ने भी !
शाहजहाँपुर के अभाव-जर्जर, पुरातनपंथी ब्राह्मण-परिवार में जन्मी वर्षा वशिष्ठ बी.ए. के पहले साल में अचानक एक नाटक में अभिनय करती है और उसके जीवन की दिशा बदल जाती है। आत्माभिव्यक्ति के संतोष की यह ललक उसे शाहजहाँनाबाद के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा तक लाती है, जहाँ कला-कुंड में धीरे-धीरे तपते हुए वह राष्ट्रीय स्तर पर अपनी क्षमता प्रमाणित करती है और फिर उसके पास आता है एक कला फिल्म का प्रस्ताव !

आत्मान्वेषण और आत्मोपलब्धि की इस कंटक-यात्रा में एक ओर वर्षा अपने परिवार के तीखे विरोध से लहूलुहान होती है और दूसरी ओर आत्मसंशय, लोकापवाद और अपनी रचनात्मक प्रतिभा को मांजने-निखारने वाली दुरूह, काली प्रक्रिया से क्षत-विक्षत। पर उसकी कलात्मक आस्था उसे संघर्ष-पथ पर आगे बढ़ाती जाती है।
वस्तुतः यह कथा-कृति व्यक्ति और उसके कलाकार, परिवार, सहयोगी एवं परिवेश के बीच चलने वाले सनातन द्वंद्व की और कला तथा जीवन के पैने संघर्ष व अंतर्विरोधों की महागाथा है।

परंपरा और आधुनिकता की ज्वलनशील टकराहट से दीप्त रंगमंच एवं सिनेमा जैसे कला-क्षेत्रों का महाकाव्यीय सिंहावलोकन ! अपनी प्रखर संवेदना के लिए सर्वमान्य सिद्धहस्त कथाकार तथा प्रख्यात नाटककार की अभिनव उपलब्धि !
Format:
Paperback
Pages:
pages
Publication:
Publisher:
Radhakrishna Prakashan
Edition:
1. saṃskaraṇa, 1. saṃskaraṇa, 1. saṃskaraṇa, 1. saṃskaraṇa
Language:
hin
ISBN10:
8171191347
ISBN13:
9788171191345
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