सेठ सुन्दरदास ने अत्यन्त दयाभाव दिखाकर अपने दूर के रिश्तेदारों को अपने घर में आश्रय दिया था । लेकिन फिर हालात ने कुछ ऐसा पलटा खाया कि सुन्दरदास ने खुद को पागलखाने में बंद पाया । काश कि वो जानता होता कि वो रिश्तेदार नहीं सांप पाल रहा था जिसको चाहे कितना ही दूध पिलाया जाये, उसकी जात नहीं बदलती, वो डंसे बिना नहीं मानता !
सेठ सुन्दरदास ने अत्यन्त दयाभाव दिखाकर अपने दूर के रिश्तेदारों को अपने घर में आश्रय दिया था । लेकिन फिर हालात ने कुछ ऐसा पलटा खाया कि सुन्दरदास ने खुद को पागलखाने में बंद पाया । काश कि वो जानता होता कि वो रिश्तेदार नहीं सांप पाल रहा था जिसको चाहे कितना ही दूध पिलाया जाये, उसकी जात नहीं बदलती, वो डंसे बिना नहीं मानता !