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मेरी तेरी उसकी बात [Meri Teri Uski Baat]

यशपाल, Yashpal
4.09/5 (48 ratings)
इस उपन्यास की पृष्ठभूमि अगस्त 1942 का ‘भारत छोड़ों’ आन्दोलन का विस्फोट है। परन्तु यह कहानी दो पीड़ियों से क्रान्ति की वेदना को अदम्य बनाते वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक और साम्रप्रदायिक विषमताओं का स्पष्टीकरण भी है। यशपाल की दृष्टि में क्रांति का अर्थ केवल शासकों के वर्ण-पोशाक का बदल जाना ही नहीं परन्तु जीवन में जीर्ण रूढ़ियों की सड़ांध से उत्पन्न व्याधियों और सभी प्रकार की असह्य बातों का विरोध भी हैं। यशपाल अपनी आरम्भिक रचनाओं से ही नारी विषमताओं के मुखरतम विरोधी और उसकी पूर्ण स्वतंत्रता के समर्थक रहे हैं। इस रचना में यह बात उन्होंने और सबल तथा निश्शंक स्वर में कही है। उपन्यास का कथा विस्तार राजनैतिक विस्फोट से ब्रिटिश शासन से मुक्त तक ही नहीं बल्कि देश को अवश रखने के लिए विदेशी नीति द्वारा बोये विष-बीजों के अविशिष्ट प्रभावों पर्यन्त भी है, जिनके बिना भारतीय नर- नारी की मुक्ति असम्भव है। अन्ततः वह कथा केवल क्रान्ति की मशीन नर- नारियों की नहीं बल्कि उन पात्रों की मानवीय समस्याओं, जीवन की नैसर्गिक उमंगों आवश्यकताओं और संस्कारों के द्वन्द्वों की भी है। पूरा उपन्यास आदि से अन्त तक रोचक है। आगामी पचासों वर्षों तक यह उपन्यास भारतीय कथाकारों के लिए मार्ग दर्शक रहेगा।
Format:
Paperback
Pages:
568 pages
Publication:
2009
Publisher:
Lokbharti Prakashan
Edition:
Language:
hin
ISBN10:
818031359X
ISBN13:
9788180313592
kindle Asin:
B01MFFF2TG

मेरी तेरी उसकी बात [Meri Teri Uski Baat]

यशपाल, Yashpal
4.09/5 (48 ratings)
इस उपन्यास की पृष्ठभूमि अगस्त 1942 का ‘भारत छोड़ों’ आन्दोलन का विस्फोट है। परन्तु यह कहानी दो पीड़ियों से क्रान्ति की वेदना को अदम्य बनाते वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक और साम्रप्रदायिक विषमताओं का स्पष्टीकरण भी है। यशपाल की दृष्टि में क्रांति का अर्थ केवल शासकों के वर्ण-पोशाक का बदल जाना ही नहीं परन्तु जीवन में जीर्ण रूढ़ियों की सड़ांध से उत्पन्न व्याधियों और सभी प्रकार की असह्य बातों का विरोध भी हैं। यशपाल अपनी आरम्भिक रचनाओं से ही नारी विषमताओं के मुखरतम विरोधी और उसकी पूर्ण स्वतंत्रता के समर्थक रहे हैं। इस रचना में यह बात उन्होंने और सबल तथा निश्शंक स्वर में कही है। उपन्यास का कथा विस्तार राजनैतिक विस्फोट से ब्रिटिश शासन से मुक्त तक ही नहीं बल्कि देश को अवश रखने के लिए विदेशी नीति द्वारा बोये विष-बीजों के अविशिष्ट प्रभावों पर्यन्त भी है, जिनके बिना भारतीय नर- नारी की मुक्ति असम्भव है। अन्ततः वह कथा केवल क्रान्ति की मशीन नर- नारियों की नहीं बल्कि उन पात्रों की मानवीय समस्याओं, जीवन की नैसर्गिक उमंगों आवश्यकताओं और संस्कारों के द्वन्द्वों की भी है। पूरा उपन्यास आदि से अन्त तक रोचक है। आगामी पचासों वर्षों तक यह उपन्यास भारतीय कथाकारों के लिए मार्ग दर्शक रहेगा।
Format:
Paperback
Pages:
568 pages
Publication:
2009
Publisher:
Lokbharti Prakashan
Edition:
Language:
hin
ISBN10:
818031359X
ISBN13:
9788180313592
kindle Asin:
B01MFFF2TG